उत्तराखंड के गांवों से निरंतर हो रहे पलायन को थामने की दिशा में सरकार गंभीर हुई है। इस कड़ी में राज्य के उन गांवों को मॉडल ग्राम बनाने की तैयारी है, जहां 50 प्रतिशत से ज्यादा पलायन हुआ है। प्रथम चरण में ऐसे 100 गांव लेने का निर्णय लिया गया है, जिनके क्लस्टर बनाने की प्रक्रिया इन दिनों चल रही है।
इन गांवों में मूलभूत सुविधाएं तो पसरेंगी ही, आजीविका विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस दृष्टि से वहां विभागीय योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए पलायन निवारण आयोग समन्वयक की भूमिका में रहेगा। सरकार ने उत्तराखंड की स्थापना के रजत जयंती वर्ष में गांवों के विकास पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया है। वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में भी इसके लिए सरकार ने कई प्रविधान किए हैं। इसके पीछे गांवों से हो रहे पलायन की चिंता भी समाहित है। इसी कड़ी में पलायन प्रभावित गांवों को विभिन्न विभागों की सभी योजनाओं से संतृप्त करने पर जोर दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के क्रम में पूर्व में शासन स्तर पर हुई बैठक में उन 478 गांवों पर ध्यान देने का निर्णय लिया गया था, जिनमें 50 प्रतिशत या इससे ज्यादा पलायन हुआ है। पहले चरण में ऐसे 100 गांवों के एकीकृत विकास व आजीविका के अवसर मुुहैया कराने को कदम उठाने का निश्चय किया गया। अब इन गांवों के लिए कसरत प्रारंभ कर दी गई है। 10-10 गांवों को लेकर इनके 10 क्लस्टर बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। इसके लिए पलायन निवारण आयोग ने अपने सदस्यों को संबंधित जिलों में भेजा है। आयोग के उपाध्यक्ष डॉ एसएस नेगी के अनुसार पलायन प्रभावित गांवों को मॉडल बनाया जाना है। यानी, वहां पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत सभी मूलभूत सुविधाएं विकसित की जाएंगी। आजीविका विकास के लिए भी ठोस कदम उठाए जाएंगे। डॉ नेगी ने बताया कि इस मुहिम में आयोग को समन्वयक की भूमिका में है। वह यह सुनिश्चित करेगा कि वह इन गांवों के क्लस्टर में सभी विभागों की योजनाओं ठीक से धरातल पर उतरें।
साथ ही आयोग यह भी देखेगा कि इन गांवों में और क्या-क्या हो सकता है। इसके लिए भी कार्ययोजना बनाने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजे जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस पहल के परिणाम के आधार पर अन्य पलायन प्रभावित गांवों को द्वितीय चरण में लिया जाएगा।
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