राज्य में लिव इनमें रहने वाले युगल में से यदि महिला या पुरुष, कोई एक भी जनजातीय समाज का है, तो उनके लिए लिव इन का पंजीकरण कराना जरूरी नहीं है। यह उनके विवेक पर है कि वे पंजीकरण कराते हैं या नहीं। कारण यह कि जनजातियों के समान नागरिक संहिता से बाहर होने के कारण उन पर यह प्रविधान लागू नहीं होते। यहां तक कि उत्तराखंड का स्थायी या मूल निवासी राज्य से बाहर कहीं लिव इन में रहता है, तो वह भी इसके दायरे में नहीं आएगा। वे चाहें तो स्वेच्छा से यह कदम उठा सकते हैं। राज्य में समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सबसे अधिक चर्चा लिव इन रिलेशनशिप को लेकर हो रही है। विभिन्न कारणों से इसका विरोध भी हो रहा है। साथ ही इसे लेकर कई भ्रांतियां भी हैं। यूं तो विशेषज्ञ समय-समय पर लिव इन को लेकर स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं, लेकिन अभी भी पूरी तरह तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। मसलन लिव इन पर पंजीकरण किसे कराना अनिवार्य है, कौन इसके दायरे से बाहर है, पंजीकरण की सूचना गोपनीय रखने की बात कितनी कारगार साबित होगी और क्या इसका स्थायी या मूल निवास से कोई संबंध है आदि।
उत्तराखंड में एक वर्ष से अधिक रहने वालों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य
इस विषय पर समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने वाले समिति में शामिल रहे समाजसेवी मनु गौड़ कहते हैं कि राज्य में एक वर्ष से अधिक समय से रहने वाले व्यक्तियों को विवाह करने अथवा लिव इन में रहने के लिए पंजीकरण कराना जरूरी है। यद्यपि यह बात जनजातीय समुदाय पर लागू नहीं होती। यदि लिव इन में रहने वाले युगल में से पुरुष अथवा महिला जनजातीय समाज से है तो उनके लिए पंजीकरण बाध्यकारी नहीं है। कारण यह कि जनजातियों को इससे बाहर रखा गया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि राज्य के मूल निवासी एक युगल के रूप में राज्य से बाहर लिव इन संबंधों के तहत रह रहे हैं तो वे भी इसके दायरे से बाहर हैं। कारण, दूसरे राज्यों में यह कानून लागू नहीं है। जो प्रदेश में एक वर्ष से अधिक की अवधि से रह रहा है, उनके लिए यह कानून बाध्यकारी है।
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